(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत के जननायक : भगत सिंह (Legendary Bhagat Singh)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): प्रो. सय्यद इरफ़ान हबीब, (भगत सिंह और राष्ट्रिय आंदोलन पर कई किताबों के लेखक), वागीश झा (इतिहास के जानकर और लेखक)
सन्दर्भ:
शहीद-ए - आज़म सरदार भगत सिंह को दुनिया के मशहूर क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। भगत सिंह एक धर्मनिरपेक्ष शख़्सियत थे। जिन्होंने मुल्क़ की आज़ादी के लिए अपनी क़ुर्बानी दी। आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भगत सिंह सिर्फ एक शहीद ही नहीं थे, बल्कि वो एक क्रांतिकारी विचारक भी थे। उनका मानना था कि इंक़लाब सिर्फ बंदूक और गोलियों से नहीं आता बल्कि उसकी धार विचारों की शान पर तेज़ होती है।
भगत सिंह 28 सितंबर 1907 को जिस आर्य समाजी सिख परिवार में जन्में उसका भी आज़ादी से गहरा ताल्लुक था। इसके अलावा करतार सिंह सराभा की शहादत को छोटी सी उम्र में ही उन्होंने अपना आदर्श मान लिया था । भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज की अपनी पढ़ाई छोड़ आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की शुरुआत की। भगत सिंह के क्रांतिकारी लेख 1924 से ही अख़बारों और पत्रिकाओं में छपने लगे थे। जिनके ज़रिये भगत सिंह की क्रांतिकारी छवि लोगों तक पहुंचने लगी थी। 1925 में हुए काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी के बाद भगत सिंह और ज़्यादा आंदोलित हो गए। बाद में भगत सिंह चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशसन’ से जुड़ गए और इसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का नया नाम दिया।
भगत सिंह के जोश में तर्क की भावना होती थी। जिसके कारण वो हमेशा से ही युवाओं के आइडियल बने रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वो क़रीब 2 साल तक जेल में रहे और वहां उन्होंने 404 पन्ने की एक डायरी भी लिखी। भगत सिंह जन संगठन और जन चेतना के ज़रिये अपना मक़ाम हांसिल करना चाहते थे। वो लोगों को मारने और निजी हिंसा के बिल्कुल ख़िलाफ़ थे। उनका कहना था कि हिंसा हमारी मजबूरी है, क्योंकि ब्रिटिशर हिंसा के ज़रिये ही हम पर शासन करना चाहते हैं, इसलिए उनकी हिंसा को रोकने और भारत को आज़ाद कराने के लिहाज से हमें भी हिंसा का रास्ता अख़्तियार करना पड़ा है।
आज़ाद भारत के लिए उनका ख़्वाब था कि भारत की आज़ादी सिर्फ अंग्रेज़ों के शासन ख़त्म होने या फिर शासन भारतीयों के हाथों में आने भर से नहीं मिल जाएगी। हम भारत की जनता के लिए लड़ रहे हैं और आज़ादी मिलने के साथ ग़रीब और शोषित जनता की समस्याओं का ख़त्म होना भी ज़रूरी है।
भगत सिंह अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से काफी अलग थे। दूसरे स्वतंत्रता सेनानी जहां सिर्फ भारत की आज़ादी के बारे में सोचते थे, तो वहीं भगत सिंह के विचारों में लिबरेशन महत्वपूर्ण था। सरदार भगत सिंह भारत की आज़ादी के साथ-साथ साम्प्रदायिकता, अछूत समस्या और भारतीय संसाधनों पर ब्रिटिशर्स और अपने ही देश के लोगों की ओर से किए गए जबरियन हक़ को समाप्त करना चाहते थे।
भगत सिंह ने अपने तार्किक विचारों के ज़रिये लोगों को सोचने पर मजबूर किया। जिसमें भारत को सेक्युलर, सोशलिस्ट और भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए जाने पर जोर था। भगत सिंह पूरे साउथ एशिया में एक आइकॉन के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान भी भगत सिंह को आज़ादी का रियल हीरो मानता है।
8 अप्रैल 1929 को ब्रिटिश सरकार की सेंट्रल एसेम्बली में बम फेंकने बम फेंकने के जुर्म में भगत सिंह की गिरफ़्तारी हुई। जिसके बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दो अन्य साथियों राजगुरू और सुखदेख के साथ फांसी दे दी गई। दरअसल ज़्यादातर लोग सिर्फ भगत सिंह के बलिदान को ही याद करते है जबकि उनकी राजनैतिक और सामाजिक सोच की बौद्धिक विरासत के बारे में विचार नहीं किया जाता है। स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने भी भगत सिंह को क्रांति की आत्मा कहा था। इसके अलावा पट्टाभि सीतारमैया ने भी लिखा कि उस वक़्त 23 साल के भगत सिंह की लोकप्रियता 61 साल के महात्मा गांधी से कहीं ज़्यादा थी।